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महाराणा प्रताप की यशस्वी गाथा


प्रताप की पांच बातें हैं जो बनाती हैं उन्हें सबसे अलग


महाराणा प्रताप मेवाड़ प्रांत (अब राजस्थान का हिस्सा) के शासक थे और तब कभी न हाराए जा सकने वाले मुगलों से भिड़ गए थे। प्रताप उदय सिंह द्वितीय और जयवंता बाई के सबसे बड़े पुत्र थे जिन्हें उदयपुर का संस्थापक माना जाता है। दोस्त तो दोस्त उनके दुश्मन भी उनकी सैन्य क्षमता का लोहा मानते थे। महाराणा प्रताप के अदम्य साहस, जिजीविषा और कभी हार न मानने वाले रवैये की वजह से उन्हें भारतीय इतिहास में सम्मानपूर्वक देखा और पढ़ा जाता है। आज भी महाराणा प्रताप का जिक्र समस्त भारतीयों के लिए गर्व का विषय है।


■ महाराणा प्रताप के शारीरिक सौष्ठव की वजह से उन्हें भारत के सबसे मजबूत लड़ाके का तमगा मिला था। वे 7 फीट 5 इंच लंबे थे और 80 किलोग्राम के भाले के साथ-साथ 208 किलोग्राम की दो तलवारें भी साथ लेकर चलते थे। इसके अलावा वह 72 किलोग्राम का कवच भी पहना करते थे।


■ महाराणा प्रताप के युद्ध कौशल के लिए 1576 के हल्दीघाटी को हमेशा याद किया जाता है। उनके पास मुगलों की तुलना में आधे सिपाही थे और उनके पास मुगलों की तुलना में आधुनिक हथियार भी नहीं थे लेकिन वे डटे रहे और मुगलों के दांत खट्टे कर दिए।


हल्दीघाटी की जंग 18 जून साल 1576 में चार घंटों के लिए चली। मुगलों की हालत इस जंग में पतली हो गई थी तभी उन्हें शक्ति सिंह के रूप में महाराणा का भेदिया भाई मिल गया। शक्ति सिंह ने मुगलों के समक्ष महाराणा की सारी सैन्य रणनीति और खुफिया रास्तों का खुलासा कर दिया।


■ महाराणा ने मुगलों के सेनापति मान सिंह (हाथी पर सवार) के ऊपर अपने घोड़े से हमला किया। इस हमले में हाथी से टकराने की वजह से उन्हें और चेतक को गहरी चोटें आईं। उनका घोड़ा चेतक युद्ध में उनका अहम साथी था। महाराणा बेहोशी की मुद्रा में चले गए। प्रताप के सेनापति मान सिंह झाला ने इस स्थिति से उन्हें निकालने के लिए अपने कपड़ों से उनके कपड़े बदल दिए ताकि मुगलों को चकमा दिया जा सके। चेतक महाराणा को लेकर वहां से सरपट दौड़ा लेकिन वह बुरी तरह घायल था। उसने एक अंतिम और ऐतिहासिक छलांग लगाई और महाराणा को लेकर हल्दीघाटी दर्रा पार कर गया। चेतक को इतनी चोटें आई थीं कि वह नहीं बच सका।


महाराणा प्रताप हल्दीघाटी के युद्ध में पीछे जरूर हटे थे, लेकिन उन्होंने मुगलों के सामने घुटने नहीं टेके। वे फिर से अपनी शक्ति जुटाने लगे। अगले तीन सालों में उन्होंने भामाशाह द्वारा दिए गए धन से 40000 सैनिकों की सेना तैयार की और मुगलों से अपना अधिकांश साम्राज्य फिर से छीन लिया।