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आयुर्वेद में पोषण का सिद्धान्त - Principles of Nutrition in Ayurveda

समस्त भोज्य पदार्थों को उनके मुख्य रस के अनुसार छ वर्गों में विभाजित किया गया है. ये इस प्रकार है मधुर अम्ल लवण कटु विक्त और कथाय आयुर्वेद मतानुसार हमें अपने हर बार के मुख्य भोजन में प्रत्येक प्रकार के रस युक्त भोजन को सम्मिलित करना चाहिए। प्रत्येक रस में भोजन के पूर्ण पाचन का गुण होता है। शरीर को आवश्यक समस्त पोषक द्रव्यों की प्राप्ति होती है संहिता के अनुसार मनुष्य को सर्व रसो (छ: रस) का अभ्यास करना चाहिए इससे शरीर में बल की प्राप्ति होती है।



पूर्ण और संतुलित आहार के लिए यह आवश्यक है प्रत्येक रस वाले पदार्थों को हम अपने भोजन में शामिल करें। उदाहरणार्थ वनस्पतियों और फलों में मधुर रस के लिए गाजर अम्ल रस हेतु नींबू संतरा एवं अन्य सभी फल तिक्त एस के लिए करेला कटु एवं आँवला आदि का सेवन करना चाहिए। आमलकी रसायन जो कि आँचल से निर्मित होता है उसमें लवण के अतिरिक्त शेष पाँची उपस्थित होते हैं, अत: आँवले का उपयोग फल, स्वरस चूर्ण एवं अन्य औषधीय रूप में किया


मधुर रस के सेवन से शरीर के भार में वृद्धि होती है यह शरीर में जल को मात्रा (त्वचा में नमी) को बढ़ाता है। यह शरीर की प्राओं को पुष्ट करने में सर्वश्रेष्ठ है मधुर रस के सेवन से मुख में लार की वृद्धि होती है प्यास शान्त होती है तथा त्वचा स्वर व बालों में भी अच्छे लाभकारी प्रभाव होते है। यह शरीर का सर्पण करता है।


अम्ल रस से शरीर की पाचन क्रिया सुदृढ़ होती है इससे रसों का शरीर में संचरण भी बढ़ जाता है। शरीर तथा हृदय को बल मिलता है, इससे ज्ञानेन्द्रियों को बल मिलता है, तथा खनिज द्रव्यों के शरीर से उपार्जन में भी सहयोग मिलता है। अम्ल रस शरीर की सभी धातु को पुष्ट करने में सहायक है।


लवण रस से भोजन के स्थान में बढ़ोत्तरी होती है इससे भोजन का पाचन अच्छा होता है, ऊतकों तथा त्वचा में स्निग्धता आती है, शरीर में खनिजदयों की मात्रा नियमित होती है तथा तांत्रिका तंत्र मजबूत होता है क्योंकि इसमें पानी को आकर्षित करने का गुण होता है इससे दया में चमक आती है तथा शरीर का सम्पूर्ण विकास होता है। कटु रस से पाचन में सुधान आता है इससे सायनस का शुद्धिकरण होता है। शरीर की उपापचय कियाए बढ़कर शरीर से वायु का निस्तारण ठीक से होता है क् परिसंचरण बढ़कर मांसपेशियों की पीड़ा में आराम आता है।


विका रस से शरीर की रायों के बालयों एवं पाचन ग्रन्थियों के साथ बढ़ने से भूख अधिक लगती है तथा खाये गये आहार का ठीक से पाचन होता है। भूख अधिक लगती है तथा साथ ही भोजन के स्वाद में बढ़ोत्तरी होती है। यह जीवाणु नाशक, जन्तुष्न तथा जीवन गुण वाला है। यह शरीर का वनज कम करने विकार वर तथा मिचली को कम करता है।


काय र तिक्त रस से कम शीत गुण वाला होने पर भी शरीर पर शीत प्रभाव दिखाता है। इसके सेवन से मुँह में सूखापन तथा जीन के उपर एक परत जैसी अनुभूति होती है।